छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में स्थित भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य, भारत के सबसे समृद्ध जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है। 163 वर्ग किलोमीटर में फैला यह अभयारण्य मैकल पहाड़ियों की गोद में बसा हुआ है और घने जंगलों से लेकर खुली घासभूमि तक, प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करता है।
यह क्षेत्र वनस्पतियों की कई प्रजातियों का घर है, जो न केवल पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए भी अति उपयोगी हैं।
भोरमदेव के जंगलों को मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय नम और शुष्क पर्णपाती वन के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन में साल (Shorea robusta), सागौन (Tectona grandis) और बीजा (Pterocarpus marsupium) जैसे वृक्ष प्रमुख हैं। ये पेड़ अपनी प्राकृतिक उपयोगिता के साथ–साथ आर्थिक महत्व भी रखते हैं।
वहीं, शुष्क पर्णपाती जंगलों में तेंदू (Diospyros melanoxylon), महुआ (Madhuca indica), और पलाश (Butea monosperma) जैसे वृक्ष पाये जाते हैं, जो शुष्क वातावरण में भी आसानी से पनपते हैं। तेंदू के पत्ते बीड़ी बनाने में विशेष रूप से उपयोग होते हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
अभयारण्य की अंडरस्टोरी यानी निचले स्तर की वनस्पतियाँ भी काफी समृद्ध हैं। लैंटाना कैमरा, विटेक्स नेगुंडो, और कैसिया टोरा जैसी झाड़ियाँ और जड़ी–बूटियाँ यहां प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं।
ये पौधे वन्यजीवों के लिए भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं, खासकर छोटे स्तनधारियों, पक्षियों और कीटों के लिए।
ग्राउंड फ्लोरा यानी घास और जड़ी–बूटियाँ, खासकर अभयारण्य के घास के मैदानों में देखी जा सकती हैं।
क्राइसोपोगोन फुल्वस, हेटेरोपोगोन कॉन्टोर्टस, और साइनोडोन डेक्टीलॉन जैसी घासें शाकाहारी जीवों के लिए प्रमुख आहार स्रोत हैं।
भोरमदेव के जंगलों में बेलों और एपिफाइट्स की भी कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो जंगल की संरचना को और भी जटिल और समृद्ध बनाती हैं।
बौहिनिया वाह्ली और मुकुना प्रुरियंस जैसी बेलें पेड़ों के तनों पर चढ़ती हुई दिखाई देती हैं। वांडा टेसेलाटा जैसी ऑर्किड प्रजातियाँ एपिफाइट्स के रूप में पेड़ों की शाखाओं और तनों से चिपककर उगती हैं।
भोरमदेव अभयारण्य में औषधीय पौधों का खजाना छिपा हुआ है। यहाँ अश्वगंधा (Withania somnifera), कालमेघ (Andrographis paniculata), और गिलोय (Tinospora cordifolia) जैसे पौधे पाए जाते हैं, जिनका पारंपरिक चिकित्सा में महत्वपूर्ण स्थान है।
इन औषधीय पौधों का उपयोग कई प्रकार की बीमारियों के उपचार में किया जाता है।
भोरमदेव वन्यजीव अभयारण्य की वनस्पतियाँ संरक्षण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अवैध कटाई, अतिक्रमण और पशुओं द्वारा
अत्यधिक चराई जैसी समस्याएँ इस अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रही हैं।
हालांकि, सरकार और स्थानीय समुदायों के सहयोग से संरक्षण के लिए प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि इस क्षेत्र की समृद्ध वनस्पतियाँ और वन्यजीवों का संरक्षण सुनिश्चित हो सके।