छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में स्थित भोरमदेव वन्यजीव अभ्यारण्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है।
लगभग 352 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभ्यारण्य को 2001 में वन्यजीव संरक्षण के उद्देश्य से अधिसूचित किया गया। भोरमदेव मंदिर, जो इस क्षेत्र की ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है, अभ्यारण्य के नामकरण का आधार है।
भोरमदेव मंदिर, जिसे नागवंशी राजवंश ने 7वीं से 11वीं शताब्दी के बीच बनवाया, अद्वितीय शिल्पकला और जटिल मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है। “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर भारतीय स्थापत्य कला की महानता को दर्शाता है। इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व न केवल स्थानीय बल्कि देशभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है, जिससे अभ्यारण्य की ऐतिहासिक पहचान और भी गहरी होती है।
भोरमदेव वन्यजीव अभ्यारण्य, कान्हा और अचानकमार के बीच के महत्वपूर्ण वन्यजीव कॉरिडोर का हिस्सा है, जो बाघों और अन्य वन्यजीवों की सुरक्षित आवाजाही के लिए आवश्यक है। अभ्यारण्य में उष्णकटिबंधीय नम और शुष्क पर्णपाती वन हैं, जो बाघ, तेंदुआ, सुस्त भालू, हिरण, और अनेकों पक्षियों की प्रजातियों का घर हैं। संरक्षण के प्रयास यहां की समृद्ध जैव विविधता को बनाए रखने और वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को सुरक्षित रखने पर केंद्रित हैं।
अभ्यारण्य के आसपास बसे बैगा, गोंड और कंवर जैसी जनजातियां सदियों से जंगल के साथ सह–अस्तित्व में रहती आई हैं। ये समुदाय अपने पारंपरिक ज्ञान और जीवनशैली से जंगल की रक्षा और संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। आधुनिक संरक्षण तकनीकों के साथ इनके पारंपरिक ज्ञान का समन्वय, संरक्षण प्रयासों को और भी प्रभावी बनाता है।
भोरमदेव अभ्यारण्य पारिस्थितिकी पर्यटन के क्षेत्र में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। यहां आने वाले पर्यटक वन्यजीव सफारी, पक्षी अवलोकन और भोरमदेव मंदिर की यात्रा का आनंद लेते हैं। इसके माध्यम से न केवल पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाई जा रही है, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी आर्थिक रूप से सशक्त किया जा रहा है।
अभ्यारण्य को अवैध शिकार, आवास ह्रास और मानव–वन्यजीव संघर्ष जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, निरंतर चल रहे संरक्षण कार्यक्रम और स्थानीय समुदायों की सहभागिता से इन समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। इन प्रयासों का उद्देश्य अभ्यारण्य की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर को दीर्घकालिक रूप से संरक्षित रखना है।
भोरमदेव वन्यजीव अभ्यारण्य न केवल वन्यजीवों का एक सुरक्षित ठिकाना है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर और प्रकृति की अद्वितीय सुंदरता का प्रतीक भी है।